Saturday, July 15, 2017

ब्रह्मचर्य योगी की मुक्त अवस्था का दूसरा नाम है।

ब्रह्मचर्य के विषय में संसार में काफी कुछ कहा और सुना जाता है। हिन्दू धर्म की रीति रिवाजों के अनुसार मनुष्य की आयु का चौथा भाग अर्थात पच्चीस वर्ष की आयु तक का जीवन, ब्रह्मचर्य का जीवन है। और ब्रह्मचर्य एक आश्रम का नाम भी है, जिसमें अनुयायियों को ब्रह्मचारी कहा जाता है। तथा ब्रह्मचर्य का जीवन गृहस्थ जीवन के पहले का जीवन समझा जाता है। इसमें  ब्रह्मचारी को सम्भोग अर्थात स्त्री संसर्ग की अनुमति नहीं है।

ब्रह्मचर्य का अर्थ - वीर्य को सुरक्षित रखना, कामवासना रहित होकर केवल अध्ययन करना, शिष्यवृत्ती, धार्मिक अध्ययन, आत्मसंयम, इंद्रियनिग्रह, कौमार्य इत्यादि द्वारा ही लिया जाता है। परंतु ब्रह्मचर्य का सर्वाधिक उपयुक्त अर्थ है, ब्रह्म अर्थात परमात्मा में रमना। यह ब्रह्मचर्य सत्य धर्म का नौंवा आधार है।

"ब्रह्मचारी है वही, जो सदा ब्रह्म में रहता है।
अपने साधन नियम में रहता, माया कीचोटें सहता है"।।

अर्थात ब्रह्मचारी की पहचान यही है, कि वह ब्रह्म चिंतन में लीन रहता है। ब्रह्म का अर्थ है सर्वव्यापक परमात्मा अर्थात "अखंड ज्योति निराकार", तथा जो योगी अपनी साधना में रत रहता है, जो अपने योग के आदरणीय नियमों का पालन करता रहता है तथा माया की चोटों को सहन करता रहता है, वह योगी ब्रह्मचारी है। केवल मात्र हठपूर्वक मूत्रेन्द्रिय को बांधकर रखना ब्रह्मचर्य नहीं है।

यद्यपि मूत्रेन्द्रिय पर संयम योग के लिए सहायक है तथा जो व्यक्ति मूत्रेन्द्रिय का संयम किए बिना ही योग सिद्ध होने की इच्छा रखता है, वह केवल भोजन के दर्शन मात्र से ही अपनी भूख को शांत करने के समान ही करता है। उस योग क्रिया का फल उस योगी को नहीं मिल पाता। दैविक शक्तियों की कृपा उसे प्राप्त नहीं हो पाती।

परंतु केवल एकमात्र यही कार्य ही ब्रह्मचर्य नहीं है। ब्रह्मचर्य का वास्तविक स्वरुप, योगी केवल ब्रह्मलीन अवस्था में ही अनुभव कर सकता है। वह अवस्था संपूर्ण रूप से आंतरिक है। उस समय ज्ञानेंद्रियां तथा कर्मेंद्रियां मन में लीन हो जाती हैं। मन अहंकार में लीन हो जाता है। अहंकार चित में लीन हो जाता है तथा चित आत्मा में लीन हो जाता है और आत्मा परमात्मा में लीन हो जाती है। यहां पर जब योगी की आत्मा, परमात्मा से एकत्व प्राप्त कर लेती है तो ब्रह्मचर्य संपूर्ण हो जाता है।

इंद्रिय संयम का अर्थ यही है कि वे मन में स्थापित हो जाएं तथा ब्रह्मचर्य का एकमात्र अर्थ ब्रह्मलीनता है, कैवल्य है, मोक्ष है, मुक्ति है तथा मन का समग्र संयम है। ब्रह्मचर्य योगी की मुक्तावस्था का दूसरा नाम है।

परमहंस जिदानन्द

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Paramhans Jiddanand