Friday, July 14, 2017

ईश्वर को तर्क से नहीं जाना जा सकता है

अनादि काल से ईश्वर के विषय में ज्ञान प्राप्त करने की कोशिश की जा रही है परंतु ईश्वर को आज तक पूर्णतया किसी ने नहीं जाना और शायद भविष्य में कोई जान भी नहीं पाएगा। कितने ही ज्ञान के अभिमान में चूर तर्कशील मनुष्य आज तक विश्व में प्रकट हुए हैं, अब भी हैं और आगे भी होंगे, परंतु कोई तर्क से ईश्वर को नहीं जान सका। फिर भी ईश्वर को जानने के उपाय हैं, और वे उपाय हैं ईश्वरीय भक्ति, ईश्वरीय प्रेम, दृढ़ योग साधना की भावना, शास्त्र की वाणी पर दृढ़ विश्वास इत्यादि।

सत्य धर्म के आधारों का प्रयोजन ही यही है कि मानव आत्मा पवित्र होकर योग की दृढ़ धारणा करे तथा गुढ़ योग समाधि द्वारा ईश्वर तत्तव का ज्ञान प्राप्त कर लें, परंतु लोग ईश्वर प्राप्ति के लिए यत्न करने के बजाय दूसरों के ऊपर कटाक्ष करते हैं व आलोचना करते हैं। हो सकता है यह उनके मिथ्या अभिमान को संतुष्टि देने का कोई उनका अपना तरीका हो, परंतु वह यह नहीं जानते कि तर्क व आलोचना श्रद्धा, विश्वास एवं भक्ति की मृत्यु हैं।

मान लो एक भक्त अपनी श्रद्धा श्रीकृष्ण की प्रतिमा में प्रकट कर रहा है और दूसरा उस प्रतिमा को कागज़, काठ, धातु या पत्थर कह देता है, तो वह भक्त अपनी श्रद्धा को प्रकट नहीं कर पाएगा। यद्यपि जड़ वस्तुएं भी चेतन होती हैं, परंतु वह सबके आगे नहीं होती यही विशेषता है। यदि हो भी जाती हैं, तो उन्हें चमत्कार कहकर भुला दिया जाता है, जैसे गणेश की मूर्ति का दूध पीना तर्क करने वाले भूल चुके हैं।

तर्क एक ऐसी तलवार है जो श्रद्धा को काट देती है। तर्कशील व्यक्ति यद्यपि उधार के ज्ञान से संपन्न हो सकते हैं, परंतु आत्मज्ञान उनकी सम्पत्ति नहीं हो सकती। ईश्वरीय भक्ति का सिद्धांत यह है कि वह लोक में प्रचलित किसी भी व्यवस्था को हानि पहुंचाए बिना ही परम तत्व का साक्षात्कार करा देती है। अहिंसा के उपदेश का यही अर्थ है कि हम बिना किसी अन्य के अधिकारों को हानि पहुंचाए जीवन यापन करें, तभी परमात्मा हम पर कृपा करेगा तथा तभी हमें आत्मज्ञान होगा। दृढ़ ईश्वरीय प्रेम ही आत्मज्ञान का अचूक उपाय है।

परमहंस जिदानन्द

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Paramhans Jiddanand