आत्मा का दर्शन करना ही जीवन का परम लक्ष्य है। परन्तु यह आत्मा का दर्शन करना तथा ज्ञान होना इत्यादि बहुत ही कठिन है, और यह आसानी से न समझ में आने वाला होता है। आत्मा का ज्ञान जिन्हें प्राप्त है तथा उनके द्वारा जैसा कहा गया है, वैसा ही अनुभव योग समाधि के द्वारा होता है। इसे सभी अनुभव कर सकते हैं, यदि मार्ग उचित और भक्ति सच्ची हो तो। मेरा व्यक्तिगत अनुभव प्रस्तुत लेख से भिन्न नहीं है।
अतः मैं अपने व्यक्तिगत शब्दों का प्रयोग न करके, ईश्वर श्री कृष्ण, अन्य गणमान्य महापुरुषों तथा प्रमाणित शास्त्रों के शब्दों के द्वारा ही इस विषय का यथाशक्ति वर्णन करूँगा। क्योंकि इस दुर्विज्ञेय विषय में मिथ्या वर्णन की संपूर्ण संभावना है, इसलिए मैं केवल सर्वश्रेष्ठ शास्त्रों में उपलब्ध प्रवचनों को ही क्रमबद्ध करके वर्णन करने में ही अपना स्वयं का तथा विश्व का भी हित समझता हूं।
प्रस्तुत इस लेख में आत्मा शब्द की व्युत्पत्ति, उद्भव, विकास एवं प्रयोग तथा आत्मा की परिभाषा, आत्मा की जिज्ञासा का आदेश, आत्म अज्ञता का कारण एवं फल, अज्ञानी की निन्दा, आत्मज्ञान के विषय में वेद की असमर्थता, आत्मज्ञान के लिए प्रेरणा, आत्मज्ञान का उपाय, आत्मज्ञान का विस्तार पूर्वक वर्णन, जीवात्मा का स्वरूप, परमात्मा का स्वरूप, आत्मयज्ञ एवं आत्मज्ञान का फल आदि विषयों का विशद विवरण संदर्भ सहित किया गया है।
परमहंस जिदानन्द
अक्टूबर १८, २०१७.
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